BA Semester-5 Paper-1 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।

उत्तर -

'दर्शन' शब्द संस्कृत की दृश् धातु से ल्युट् प्रत्यय लगाकर बना है। ल्युट् प्रत्यय का प्रयोग 'भाव' तथा 'करण' दोनों ही अर्थों में लगता है। इस प्रकार दर्शन शब्द का अर्थ साक्षात्कार या ज्ञान एवं उसका साधन दोनों ही होता है। इसका तात्पर्य यह है कि समग्र जीवन या सारी सृष्टि के स्वरूप या तत्व पर विचार और फलतः उसका ज्ञान या साक्षात्कार ही दर्शन है। इस तरह दर्शन सम्पूर्ण जीवन के सभी पक्षों से सम्बन्धित है। जीवन सम्बन्धी किसी भी ज्ञान - विज्ञान को इससे पृथक् नहीं रखा जा सकता। इसीलिए आधुनिक युग में भी इतिहास समाजशास्त्र राजनीति तथा विज्ञान आदि से दर्शन का सम्बन्ध दिखलाया जाता है। मनोविज्ञान तथा धर्मशास्त्र से तो 'दर्शन' का घनिष्ठ सम्बन्ध है। इस प्रकार के तत्वविवेचन के लिए 'आन्वीक्षिकी' शब्द का प्रयोग अत्यन्त प्राचीन है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में 'आन्वीक्षिकी' चतुर्विध विद्याओं में परिगणित है। वे इस प्रकार हैं- आन्वीक्षिकी त्रयी वार्ता तथा दण्डनीति।

इसी में आन्वीक्षिकी का विवरण देते हुए सांख्य योग और लोकापत को परिगणित किया गया है। इससे ज्ञात होता है कि कौटिल्य के समय तक 'दर्शन' शब्द के पर्याय रूप में 'आन्वीक्षिकी' शब्द प्रचलित हो चुका रहा होगा। मनुस्मृति में आन्वीक्षिकी की आत्मविद्या कहा गया है।

भारतीय संस्कृति परम्परा में जिसे 'दर्शन' कहते हैं वह जीवन की प्रयोगशाला में अनुभव किया गया सत्य है चाहे वह साध्य विषयक हो चाहे साधन विषयक विभिन्न समस्याओं में विभिन्न परिस्थितियों के. बीच विभिन्न मनीषियों द्वारा किये गये सत्य के अनुसन्धान और अनुभव यद्यपि सर्वथा अनुरूप या एक से नहीं हैं और वैयक्तिक एवं अन्य प्रकार की विशेषताओं के कारण एक-से हो भी नहीं सकते थे तथापि हैं वे सब सत्य की ही खोज के विभिन्न प्रयत्न और अनुभव। इसलिए उनकी 'दर्शन' संज्ञा तथा उनके दृष्टव्यों की 'ऋषि' संज्ञा सर्वथा सार्थक है। 'दर्शन' को इस व्यापक दृष्टि से देखने पर हमारा सम्पूर्ण आर्बसाहित्य वैदिक संहिता में ब्राह्मण आरण्यक तथा उपनिषद् ही दर्शन हैं। सम्पूर्ण वैदिक वाङ्मय प्राचीन तपस्वी मनीषियों एवं चिन्तकों के द्वारा दृष्ट या साक्षात्कृत तत्वों या धर्मों की अभिव्यक्ति मात्र है उनका वर्णन है। इसीलिए तो यह दृष्टा 'ऋषि' है- 'साक्षात्कृतधर्माण ऋषयो बभव"

ऋषि दृष्टि - सम्पूर्ण वैदिक वाङ्मय इसी से आर्ष साहित्य कहा जाता है। यह अन्य बात है कि वेदों का संहिता साहित्य विभिन्न देवताओं देवतातत्वों का दर्शन है उनकी अभिव्यक्ति एवं स्तुति रूप आराधना है। उनका ब्राह्मण साहित्य उन्हीं देवताओं की आराधना के एक विशिष्ट प्रकार यज्ञ अर्थात् वैदिक कर्म- विशेष का दर्शन है।

बृहदारण्यक उपनिषद् के मैत्रेयी ब्राह्मण में महामुनि याज्ञवल्क्य तथा उनकी ब्रह्मवादिनी पत्नी मैत्रेयी के मध्य अमृतत्व प्राप्ति के विषय में संवाद हुआ है मैत्रेयी के अलावाँ याज्ञवलक्य की एक और पत्नी कात्यायनी थी जो 'स्त्री प्रज्ञा' सामान्य स्त्रियों की बुद्धि वाली थी। गृहस्थ आश्रम को त्यागकर संन्यास ग्रहण करने की इच्छा प्रकट करते हुए याज्ञवल्क्य ने एक समय में अपनी ब्रहमवादिनी प्रिय पत्नी मैत्रेयी से कहा है मैत्रेयि ! मैं कात्यायनी के साथ तुम्हारा निपटारा कर देना चाहता हूँ ताकि मेरे न रहने पर तुम दोनों में कलह न हो। मैत्रेयी ने उत्तर में कहा कि हे भगवान् ! यदि यह सारी पृथ्वी वित्त से परिपूर्ण होकर मुझे प्राप्त हो जाय मैं अमर हो जाऊगीं। या नहीं? याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया- 'नहीं' ! समस्त उपकरणों से उक्त जनों का जैसा जीवन होता है वैसा ही तुम्हारा भी होगा। वित्त से अमृतत्व की आशा करना व्यर्थ ही है। तब मैत्रेयी ने कहा कि हे भगवान् ! जिस वित्त से मैं अमर न हो सकूँगी उसे लेकर क्या करूँगी। जिसे अमृतत्व का साधन जानते हों उसी का उपदेश कृपया मुझे दें।"

जिसे अमृतत्व का साधन जानते हो उसकी का उपदेश कृपया मुझे दें। याज्ञवलल्य ने कहा- मैं मैत्रेयि ! ध्यान दो मैं उपदेश दे रहा हूँ। पति, पत्नी, पुत्र वित्त पशु लोक देव वेद प्राणी सभी कुछ आत्मा के ही लिये प्रिय होता है पति पुत्रादि के लिए नहीं। अतः सर्वप्रिय आत्मा का 'दर्शन' अनुभव या साक्षात्कार करना चाहिए।

इस संवाद से यह सुस्पष्ट हो जाता है कि उपनिषदों तक आते-आते आत्मा ही सर्वप्रधान या एकमात्र प्रमेय तथा उसका ज्ञान या दर्शन ही मुख्यतम दर्शन हो गया था। जीवन के सर्वप्रथम पुरुषार्थ अमृतत्व-प्राप्ति अर्थात् मोक्ष का एकमात्र साधन होने से यह आत्मदर्शन मानव जीवन का एकमात्र वास्तविक लक्ष्य बन गया था तथा लक्ष्यभूत इस दर्शन का मुख्य साधन होने से उपनिषद् इत्यादि अध्यात्म श्रुतियों का श्रवण तथा मनन एवं तदनन्तर आत्मनिदिध्यालन जीवन की वास्तविक चर्चा। अन्य साधनों की सार्थकता आत्मदर्शन के इन्हीं साक्षात् साधनों की प्राप्ति में सहायक होने में थी। इसी से ये तीन साधन वेदान्त में आत्मज्ञान के अन्तरंग के रूप में प्रसिद्ध हैं एवं इनके भी साधन विवेक वैराग्य शमदमादि एवं मुमुक्षुत्व बहिरंग। इन विवेकादि के भी बहिरंग सत्संग तीन दान ब्रह्मचर्पादि हैं। इन सभी साधनों की सार्थकता आत्मदर्शन के 'श्रवणादि' साक्षात् साधनों की प्राप्ति में सहायक होने में ही मानी जाती थी।

भारतीय दर्शन के मुख्यतः दो भेद हैं- आस्तिक तथा नास्तिक ! 'आस्तिक' शब्द का प्रयोग अनित्यदेहादि से भिन्न नित्य आत्मा की सत्ता में विश्वास करने वाले के अतिरिक्त परलोक की सत्ता वेद की प्रामाणिकता ईश्वर तथा कर्मफल की प्राप्ति में विश्वास रखने वाले के लिये भी होता देखा जाता है।

वस्तुतः द्वितीय अर्थ प्रथम से भिन्न है क्योंकि परलोक की सत्ता में विश्वास करने का अर्थ है परलोकी या परलोक में जाने वाले की सत्ता में 'विश्वास और इस लोक में परलोक में जाने वाला तो शरीरादि अनित्य पदार्थ से भिन्न ही कोई हो सकता है शरीरादि नहीं हो सकता क्योंकि वह तो नहीं नष्ट होते देखा जाता है। उस नित्य पदार्थ का ही नाम आत्मा है। वेदादि श्रुतियों में इस प्रकार के नित्य आत्मा की सत्ता का अनेकशः प्रतिपादन होने से वैदिकमार्गानुयायी आस्तिक भी तो आत्मवादी या परलोकवादी से भिन्न नहीं हुआ। हाँ चार्वाक आदि जरूर वेदोपदिष्ट नित्य आत्मतत्व की खिल्ली उड़ाने के कारण ही मनुस्मृति आदि में 'नास्तिको वेदनिन्दकः' आदि शब्दों के द्वारा 'नास्तिक' कहे गये हैं। यो वेदोपादिष्ट यज्ञादि की निन्दा तो बौद्ध जैन आदि सम्प्रदाय वाले भी करते हैं परन्तु ये सभी आत्मा की सत्ता मानते हैं। तब इन्हें आस्तिक कहा जाय या नास्तिक?

बौद्ध अनुयायी नित्य आत्मा को तो नहीं मानते प्रतीत होते तथापि स्वकृत शुभाशुभ कर्मों के शुभाशुभ फलों को तो वे भी मानते ही हैं। अच्छा कर्म करो अच्छी योनि मिलेगी अच्छा फल मिलेगा यह बात तो भगवान् बुद्ध ने अपने उपदेशों में अनेकशः कही है। तब तो वे भी परलोक विश्वासी होने के कारण 'नास्तिक' कैसे कहे जा सकते हैं? जैन मतावलम्बी तो शुभाशुभ कर्म करने वाले आत्मा का ही फल प्राप्त्यर्थ परलोक मानने के कारण पूर्ण परलोक विश्वासी हैं। वे तो बौद्ध की तरह आत्मा को अनित्य भी नहीं मानते। तब फिर वे भी नास्तिक कैसे कहे जा सकते हैं। आत्म स्वरूप में भेद होने के कारण इन्हें नास्तिक कहना समुचित नहीं प्रतीत होता। इसी कारण से कुछ विद्वान विचारक केवल चार्वाक या लोकायत मत को ही 'नास्तिक' तथा शेष सभी को 'आस्तिक मानना अधिक उचित समझते हैं।

परन्तु अनित्य आत्मा मानने से बौद्धों को भगवान् शंकराचार्य ने अपने ब्रह्मसूत्र भाष्य में अनेकशः वैनाशिक कहा है। नैयायिक आदि अन्यों ने भी उन्हें अनात्मवादी आदि नाम दिये हैं। अतः वेदाद्युपदिष्ट नित्य आत्मा एवं यज्ञादि में विश्वास न करने एवं उनका खण्डन करने के कारण बौद्धों को प्रायेण नास्तिक सम्प्रदायों में ही परिगणित किया जाता है।

वाल्मीकि कृत रामायण में वर्णित नास्तिक मत से भी इसी बात की पुष्टि होती है। ऐसी स्थिति में जैन एवं बौद्ध मतों को नास्तिक कैसे कहा जा सकता है जबकि वे पुण्य और पाप भी मानते हैं उनके भोगस्थान परलोकों को भी तथा शुभाशुभ कर्मों के अनुसार तन्तत् लोकों में जाने वाले कर्मभोक्ता जीवात्मा को भी। इस प्रकार जैन और बौद्ध दार्शनिक अपने को नास्तिक मानते नहीं प्रतीत होते। ऐसा होने पर भी चार्वाकों की तरह वे भी अपने को वेदवादी दार्शनिक नहीं मानते। वेदवादी दर्शनों में तो न्याय वैशेषिक सांख्य, योग, पूर्वमीमांसा एवं उत्तरमीमांसा या वेदान्त ही आते हैं। वेदान्तों में भी शंकराचार्य के प्रज्ञानाद्वैत के अतिरिक्त रामानुजाचार्य का विशिष्टद्वैत निम्बार्काचार्य का द्वैताद्वैत बल्लभाचार्य का विशुद्धाद्वैत एवं मध्वाचार्य का द्वैत ये चार वैष्णव वेदान्त आते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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